संयोजक सह संपादक
ब्रजेश मिश्र
संयोजक सह संपादक
आदरणीय भारतवासियों,
पिछले 20 वर्षों से पत्राकारिता क्षेत्रा से जुड़ा हूँ और समस्या को करीब से देखकर उसके समाधन करने की लालच की वजह से ही 11 वर्ष पूर्व सिपर्फ सच ही नहीं केवल सच लिखने के लिए ‘‘केवल सच’’ हिन्दी मासिक पत्रिका का प्रकाशन अपनी युवाओं की टोली के साथ प्रारंभ कर दिया था। कम उम्र, अनुभव की कमी, ध्न का घोर अभाव, कोई वित्तीय सहयोगी नहीं, कोई पत्राकारिता में गाॅड पफादर नहीं सिपाही से राजभवन तक कैसे सपफर होगा सोचता रहता था लेकिन एक बड़ी पूँजी थी मेरे पास जो आज भी है, वह था और है ‘‘विश्वास’’। 10 लोगों की टीम आज हजारों की बन चुकी है और सिपाही से राजभवन ही नहीं बल्कि राष्ट्रपति तक पहंुच चुकी है। बिहार जैसे उद्योगविहीन राज्य से पत्रिका का प्रकाशन दुरूह कार्य था लेकिन राज्य सरकार के विज्ञापन नीति 2008 लागू होने के बाद भी राज्य सरकार के कुछ विभाग, निगम, बोर्ड ने विज्ञापनरूपी संजीवनी लगातार दिया है जिसका
पफलापफल यही है की हम मई 2017 में ‘‘एक दशक’’ पूरा कर लेंगे। कुछेक पत्राकारों ने इसे खून से सींचा है तो कुछेक ने इसका ही खून चूसा लेकिन केवल सच दिनोंदिन प्रगति के पथ पर प्रगतिमान है और बदला लेने के बजाय कुछ नया करने की दूरगामी सोच की वजह से केवल सच आज भारत के 12 हिन्दी राज्यों में काम कर रही है और इस संगठन का कोई मालिक नहीं है बलिक इसके प्रतिनिध् िही इसके सबकुछ हैं। प्रबंध्कत्र्ता के हैसियत से कभी कुछ पुरानी बाते याद करता हंू तो दिल रो पड़ता है क्योंकि इस पत्रिका को एक दशक पूरा कराने में जहां एक बेटे और माँ को खोया तो अपनी
पत्नी को बीमार बना दिया। समस्या तो यह है की आँख से आँसू भी नहीं गिरते, पैसे के अभाव में अपनी माँ के लिए कुछ नहीं कर सका और पिता से भी कभी-कभार मतभेद हो जाता है जबकि मैं आज पत्राकार हंू वह मेरी माँ की देन है तो आज पत्रिका है यह मेरे पिता का अखण्ड विश्वास एवं भरोसे का नतीजा है। ऐसा नहीं है की पत्रिका के संचालन में सिपर्फ मैंने पतझड़ देखें है बल्कि कई ऐसे साथी हैं जिसने अपने वक्त, ध्न और परिवार की कुर्बानी दी है। हमारा हौसला विज्ञापन के अभाव में नहीं टूटता लेकिन सरकार की नीति चाहे वह केन्द्र की हो या अन्य राज्य सरकारों की, उनकी दोहरी नीति के शिकार हम जैसे पत्रिका चलाने वाले लोग होते हैं तो साहस बिखरने लगता है। भगवान श्रीकृष्ण के भक्त होने की वजह से ही इस पत्रिका का नाम ‘‘केवल सच’’ रखा गया गया था। खबर ही हमारी पहचान बनी और आज इसके पत्राकार को उसके नाम से नहीं बल्कि ‘केवल सच’ के नाम से पुकारा जाता है का वातावरण बन चुका है। एक से बढ़कर एक बड़े खबर से आमलोगो की आवाज बना तो भ्रष्टों की नींद हराम कर दी। गांव की तलहटी से सचिवालय के प्रधन सचिव एवं मंत्राी के कक्ष तक मुख्यमंत्राी कार्यालय से राजभवन तक पैनी नजर रखने की वजह से केवल सच आज हर लोगों की जुबान बन चुका है। मैंने कभी सोचा भी नहीं था की मैं एक दशक नियमित पत्रिका का प्रकाशन कर पाउंगा लेकिन इतना दृढ़ निश्चय अवश्य था की शरीर में एक बंूद भी खून रहेगा तो केवल सच को बंद नहीं होने दंूगा। यह बाजार में भले ही 20 रूपये में पाठक खरीदते हैं लेकिन इसके हर पन्ने को हमारे पत्राकारों ने खून से सींचा है। साक्षात्कार के मामले में केवल सच का मुकाबला लघु एवं मध्यम पत्रा-पत्रिका नहीं कर सकता। ‘‘केवल सच’’ पत्रिका अपने पाठकों के सलाह एवं मांग के साथ-साथ हम पत्राकारों का समय बचता था उसका सदुपयोग करने के उद्देश्य से द्विभाषीय मासिक पत्रिका 2011 में ‘‘केवल सच टाइम्स’’ प्रारंभ किया और इस पत्रिका का भी नियमित प्रकाशन के 06 वर्ष पूरे होने को हैं। हम यहीं नहीं ठहरे बल्कि 2006 में ही केवल सच सामाजिक संस्थान नाम का गैर सरकारी संगठन छळव् बनाकर सामाजिक कार्य भी प्रारंभ किया गया जिसका निबंध्न 2009 में कराया गया जबकि इसके पूर्व में ही वर्ष 2008 में ‘‘श्रुति कम्युनिकेशन ट्रस्ट’’ का गठन कर केवल सच समूह को कर्म की प्रधनता का बल दिया। लोगों को जागरूक करने के लिए प्रचार रथ निकालकर समस्या और उसके समाधन का कार्य शुरू हो गया। दोनों संगठनों के बैनर तले निशक्त बच्चों को निशुल्क ट्राई सायकिल वितरित करना प्रारंभ कर दिया। इस कल्याणकारी कार्य में पुलिस विभाग ने जमकर सहयोग किया और ट्राई सायकिल वितरण में उन्होंने भी अर्थदान, श्रमदान किया। 2017 में झारखण्ड की राजधनी राँची में ‘‘अपना घर’’ वृ(ाश्रम-चाइल्ड होम बनाने के दिशा में कदम बढ़ा चुका है। निर्भीकता हमारी पहचान के तर्ज पर केवल सच ने भ्रष्ट अध्किारी किस पद पर कार्यरत्त हैं उसकी परवाह किये बगैर बेलगाम पदाध्किारी एवं कर्मचारी पर नकेल कसने की भरपूर कोशिश की गई है और उसमें हमें सपफलता भी मिली है। युवाओं को शिखर पर पहंुचाने के लिए केवल सच पत्रिका पं्रबध्न युवा पत्राकारों को बारीक से बारीक विषयों की समझ विकसित करने का प्रयास कराया जा रहा है तथा जरूरतमंद लोगों की ताकत बनने के लिए उनकी मानसिकता को धरदार बनाया जाता है। इसके पत्राकार भी पत्रिका को सर्वोच्च शिखर पर पहंुचाने के लिए अथक परिश्रम कर रहे हैं तो कुछेक दीमक की तरह संगठन को चाटना चाहते हैं लेकिन मैं खुद जंगरोध्क दवा के रूप में केवल सच के लिए एक मजबूत दीवार के रूप में खड़ा हंू और भागीरथ प्रयास करके केवल सच की सार्थकता को पूरा करता रहंूगा। भरोसा है वर्ष 2018 के दिसम्बर तक केवल सच पत्रिका परिवार का समूह में 2501 लोगों का हुजुम होगा और यह जत्था राष्ट्र की एकता और अखण्डता के लिए 24 घंटे सेवा देने का सार्थक प्रयास करता रहेगा। इस अभियान में मुझसे कहीं अध्कि इस कार्य को केवल सच के प्रतिनिध्यिों को पूर्ण करना होगा। अगर हर प्रतिनिध् िएक संकल्प ले की वह 10 प्रतिनिध् िको जोड़ेगा तो निश्चित तौर पर 2018 का सपना पूर्ण होगा। भाग्य और कर्म दोनों की भूमिका को समझते हुए केवल सच ने आम आदमी की आवाज बनकर सरकार का विरोध् किया तो सरकार की जनकल्याणकारी योजना को भी जनता तक पहंुचाकर सरकार के सार्थक पहल की चर्चा करायी। बिहार से बाहर झारखण्ड प्रदेश में भी आदिवासियों के विकास एवं उनके योजनाओं को लूटने वाले को सलाखो के पीछे पहंुचाने के लिए भी सक्रिय होकर काम करना कत्र्तव्य बन चुका है। केवल सच पत्रिका ने एक दशक पूरा करने के उपलक्ष्य में ामूंसेंबीसपअमण्पद पोर्टल न्यूज प्रारंभ कर चुका है। हर छोटी-बड़ी खबर और उसका विडियो भी हरेक मोबाइल एवं कार्यालय तक पहंुचाने का संकल्प लिया है और इसके लिए प्रयास जारी है। बेरोजगार युवक एवं युवतियों के लिए केवल सच एक मजबूत मंच के रूप में कार्य कर रहा है तथा यहां प्रशिक्षण करके आप किसी अन्य मीडिया घराने में भी जा सकते हैं। केवल सच के प्रतिनिध्यिों से आग्रह है की वह संकल्प ले कि वह दिसम्बर 2016 के पहले-पहले अपना 10 प्रतिनिध् िजोड़ने का लक्ष्य पूरा कर लें। अगर संकल्प अर्जुन की तरह हो तो लक्ष्य को सम्पूर्ण करना कठिन नहीं है और संगठन प्रधन होने के नाते में पूर्णतः आश्वस्त हंू की केवल सच के यो(ा अपने सेनापति के सोच को मंजिल तक जरूर पहंुचायेंगे। जनवरी 2018 में पिफर नये संकल्प के साथ अपने श्र(ेय पाठकों के बीच उपस्थित होंगे। अब वक्त है अपना टारगेट पूरा करने का।